पत्थर सा मजबूत था मैं जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
ये एक अधूरी है मोहब्बत की कहानी
सुनो आज ये मेरी जुबानी
मेरा भी पहला प्यार अधूरा रह गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
बेकसूर था अपनी इश्क में मैं भी
निर्मल थी उसकी भी मोहब्बत शायद
जाने फिर क्यों वो साथ छोड़ गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
जो हमसफ़र थे मोहब्बत की राहों में
जिसने वादे किए साथ निभाने का
जाने क्यों वो रुख़ मोड़ गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
ऐसे तो ना बदल छाये होंगे
अरमानों के पर उसके भी कांटे होंगे
अब वो पिंजरे में सिमट कर रह गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
अश्कों को छुपा लिया होगा मग़र
उसका भी दिल बहुत रोया होगा
मेरी तरह वो भी अधूरा रह गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिख़र गया
सोचता हूँ जब बीते दिनों को
अश्कों की दरियां बह जाती हैं
सूझता नहीं ऐसा क्यों हो गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया
ना उम्मीद थीं जिंदगी को कभी भी
पतझड़ और सावन एक साथ होगा
टूट टूट कर मैं अश्कों में बह गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया
जाने नींद, भूख, प्यास, चैन सब कहाँ गये
अब तो सिर्फ़ उसका ही ख्याल रहता हैं
लगता है जिंदगी कहीं ठहर सा गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया
तूफ़ान से टकराने का हौसला रखता था मैं
ना सोचा था कभी भी ऐसे टूट जाऊँगा
खोजता हूँ उन टुकड़ों को जो कहीं खो गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया
समेट रहा हूँ दिल के टुकड़ों को
टूटे हुए अरमानों को, बिख़रें हुए ख्वाबों को
भूला दूँगा उसे जो मुझे छोड़ गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया
आसमां को देखता हूँ तो ऐसा लगता हैं
एक जिंदगी अब भी बाकी हैं
हालातों ने एक नया मोड़ दे गया
पत्थर सा मजबूत था मैं
जाने क्यों रेत सा बिखर गया