अस्तित्व
पत्थर पर गिरते ही शीशा चूर-चूर होता है !
और शीशे पर पत्थर पड़ते ही ,
शीशा चूर-चूर बिखरता है !
हर बार शीशे को तोड़कर पत्थर अपनी
ह़स्ती जताता है !
और शीशा हर बार टूट कर यह प्रकट करता है !
कि वह टूटने के लिये ही बना है !
इसी तरह कुछेक पत्थर दिल इंसान दूसरों के शीशानुम़ा दिल को तोड़कर !
अपनी हस्ती काय़म करने की
कोशिश में लगे हुए हैं !
और कुछेक शीशे का दिल लिये हर बार
टूटते- बिखरते रहते हैं !
और हमेशा पत्थर से टक्कर लेने की
कोश़िश करते रहते हैं !
उन्हें पता नहीं की टक्कर लेने के लिए
ठोस अस्तित्व की आवश्यकता होती है ।
जिससे उसके टुकड़े अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए टूटकर बिखरने न पाए !
और उसके लिए आत्मविश्वास से परिपूर्ण दिल की जरूरत होती है !
जो पत्थर दिल इंसानों का मनोबल हिला सके !
उन्हें उनके किये आघातों का अनुभव दिला सके !
और सिद्ध कर सके ! कि अब ये शीशेनुमा दिल ! पत्थरदिलों का मुकाबला कर सकते हैं !
तथा उनमे दरार पैदा करके अपनी सामर्थ्य जता सके !
कि अब पत्थरों दिन पूरे हो चुके हैं !
और पत्थरों को तोड़ने बिखराने के लिए मज़बूत दिल शीशे पैदा हो चुके हैं !