पत्थर दिल का एतबार न कीजिए
दोस्तों,
एक मौलिक ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों की नज़र अपनी दुआओं से इस नाचीज़ को नवाजें।
ग़ज़ल
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पत्थर दिल का एतबार न कीजिए
पत्थर दिल का एतबार न कीजिए
हो गई जो भूल बारबार न कीजिए।
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संभल कर चलना मुसाफिर राहों में,
कांटो को तुम ख़बरदार न कीजिए।
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सीख लो उनसे ठोकर जो खा रहे है
है जो राज उन्हें अख़बार न कीजिए।
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ये दुनिया तमाशबीन है मजा लेती है,
दर्द ए गमो का यूँ दरबार न कीजिए।
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मुतमईन हो तो खुद से बात कीजिए,
चुप रह खुद को ख़ताबार न कीजिए।
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उम्मीद ए करार ले कर शायर “जैदि”,
बात दिल की तुम हरबार न कीजिए।
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मायने:-
एतबार:-विश्वास
ख़बरदार:-सावधान
तमाशबीन:-तमाशा देखने वाली
मुतमईन:-आश्वस्त
ख़तबार:-गुनहगार
उम्मीद ए करार:-संतोष की आशा
शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”