पत्थर को खुदा
पत्थर को खुदा मानने लगे है लोग
इंसानो को धुत्कारने लगे है लोग।
फल तो इंसानो के कर्म का ही है
यहाँ पत्थर को दोषी मानने लगे है लोग।
जा-बा-जा बत-कदे खोल बैठे है
हबीबो को भी अदू मानने लगे है लोग।
एक ही बाम में रहने वाले
कूंचा-ए-पारस में ही खून बहाने लगे है लोग।
दरिचा-ए-दिल को बंद कर
उल्फ़त की कश्ती को डुबाने में लगे है लोग।
बे-दयार में भी अक्सर
वफाद-इ-जश्न मनाने में लगे है लोग।
जज़ा है”भूपेंद्र” तेरी वफाद का याँ
दिल – फिगार की रहजनी में लगे है लोग