पत्थरों का निमंत्रण
छोटे, मोटे नुकीले पत्थर
देते हैं मुझे निमंत्रण
आकर हमें गले लगा लो।
अपने अनुभव की छैनी से
हमको धीरे- धीरे गढ़ कर
अपना कोई शिल्प सजा लो।
हम न किसी से नफरत करते
हम न किसी से मन में डरते
तुम पूजो तो पूज जाते हैं।
महलों की शोभा बन जाते
बलि दो तो बलि का पशु बन
नींव में बलि चढ़ जाते हैं।
जैसा भाव ढालोंगे तुम
वैसा ही प्रतिफल पाओगे
तुम आकर मुझे अपना लो।
आवेश में काम न लेना
घाव किसी को भी न देना
मीत! हमें तुम गीत बना लो।
—प्रतिभा आर्य
अलवर (राजस्थान)