पत्ते बिखरे, टूटी डाली
पत्ते बिखरे, टूटी डाली
और फूल मुरझाए हैं ।
जाने कैसे दिन आए हैं ,
जाने कैसे दिन आए हैं ।।
प्रेमी मन तो घिरा हुआ है,
नित अवसादों के घेरों में ।
क्षीण विवेक हुआ जग में फिर,
पड़ अपवादों के फेरों में ।
इच्छाओं को ढोते -ढोते,
काया भी देखो शिथिल हुई –
सूख रहे हैं अधर सभी के
सँग चेहरे भी कुम्हलाए हैं ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी