पति
बाबुल आँगन छोड़ कर, आई पति के साथ।
किसी अजनबी शक्स ने, जब थामा था हाथ।। १
बँधा प्यार की डोर से, यह रिश्ता मजबूत।
फौलादी जंजीर -सा, होते नाजुक सूत।। २
सात वचन फेरे लिए, कर ली पति स्वीकार।
मन मंदिर का देवता, वही हृदय का हार।। ३
नारी करती हृदय से, जिसको पति स्वीकार।
उसके चरणों में करे, तन मन सब बलिहार।। ४
मुझे मिला पति रूप में, मोहन दया निधान।
महादेव को पूजकर, पाया यह वरदान।। ५
मैं उनकी राधा बनूँ, पति मेरे घन-श्याम।
सीने से लिपटी रहूँ, देखूँ आठों याम।। ६
मेरा कल औ’ आज हो, सात जनम तक आप।
चले साँस करती रहूँ, प्रभु पति तेरा जाप।। ७
मुख सुन्दर सुकुमार तन, प्रभु पति परम सुजान।
सुखद स्नेह से सर्वदा, रखते मेरा ध्यान।। ८
मंद-मंद हँसते हुए, खुलकर करते बात।
अपने कोमल हाथ से, पति देते सौगात।। ९
कृपा तुम्हारी जब रहे, सब संभव पति नाथ।
तुम बिन सब खाली लगे, खुजलाते हैं हाथ।। १०
-लक्ष्मी सिंह