पति को व्यथा पत्र –आर के रस्तोगी
लिखना चाहती थी मन की व्यथा,पत्र में हांपते साँसों से |
लिखने से पहले स्याही बिखर गयी,पत्र में काँपते हाथो से ||
बिखरी स्याही ऐसी पत्र में,मेरी अजीब सी तस्वीर बन गयी |
जो लिख न सकी पत्र में अपनी व्यथा,बनी तस्वीर कह गयी ||
आंखे सजल थी,आँसू पत्र पर बनी तस्वीर को गीला कर रहे थे |
ऐसा लग रहा था मानो,बनी हुई तस्वीर से आँसू टपक रहे थे ||
उस बनी तस्वीर को पत्र के रूप में मैंने लिफाफे में बंद कर दिया |
उसको होठो से ऐसा चिपकाया,जैसे पति के होठो का चुम्बन लिया ||
होता है जहाँ प्यार सच्चा,खुद पे खुद ऐसी तस्वीर बन जाती है |
विरहणी की व्यथा को प्रगट करने का साधन तस्वीर बन जाती है ||
देखो आज के कलयुग में ऐसे व्यथा पत्र,अब कहाँ लिखे जाते है |
बस केवल मोबाइल पर पति पत्नि अपने झूठे दुखड़े रोये जाते है ||
आर के रस्तोगी