पति की चिता को पत्नी ने दी मुखाग्नि
(सत्य घटना पर आधारित कविता)
पति चिता को मुखाग्नि देने की, सत्य एक करुण कहानी है
नारी के सेवा साहस की, अनुपम एक निशानी है
कैराना पीड़ित एक पति, अस्पताल में भर्ती थे
पत्नी सेवा करती थी, डॉक्टर मना करते थे
पति की सेवा से बीमारी लग जाएगी, बिना बजह तूभी मर जाएगी नहीं छोडूंगी पति अकेले,भले ही मैं मर जाऊं
मौत के डर से, क्या कर्तव्य विमुख हो जाऊं?
हालत बिगड़ गई पति की, पति मौत से हार गए
भाई बंधु और कुटुंब कबीला, संस्कार से मुकर गए
मृत शरीर के संस्कार को, अग्नि दान को नहीं गए
देख स्थिति प्रशासन ने, अंतिम संस्कार की ठानी
पर उस साहसी पत्नी ने, स्वयं संस्कार करने की ठानी
कंधा दिया उसने अर्थी को, रसमें सभी निभाईं
अग्नि दान दिया पति को, श्मशान में अंतिम विदाई
अंतिम सांस तक बिना डरे, सेवा की रीत निभाई
लावारिस ना छोड़ा पति को, धन्य धन्य हे माई
दरवाजे की चौखट तक, पत्नी साथ निभाती है
आज तोड़ दिए भ्रम सारे, पत्नी सात जन्मों तक साथ निभाती है श्मशान घाट तक जाती है , अग्नि दान कर आती है
मौका पड़ने पर पत्नी यमराज से भी लड़ जाती है
सेवा साहस करुणा को, हम प्रणाम करते हैं
धन्य है हे भारत की नारी, हम सम्मान प्रकट करते हैं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी