पता-ही-नहीं-चला
पता-ही-नहीं-चला
अरे यारों कब 20+, 30+, 40+ के हो गये
पता ही नहीं चला,
कैसे कटा 22 से 36,40 तक का सफ़र
पता ही नहीं चला,
क्या पाया क्या खोया क्यों खोया
पता ही नहीं चला,
बीता बचपन गई जवानी कब आ जाएगा बुढ़ापा
पता ही नहीं चलेगा।
कल जो बेटे थे आज ससुर हो जायेंगे
पता ही नहीं चला,
कब पापा से नानु बन जायेंगे
पता ही नहीं चला,
कोई कहता सठिया गये कोई कहता छा गये क्या सच है
पता ही नहीं चला,
पहले बाप की चली फिर ससुर की चली अपनी कब चली
पता ही नहीं चला,
दिल कहता जवान हूंँ मै उम्र कहती नादान हूँ मै इसी चक्कर में कब घुटनें घिस गये
पता ही नहीं चला,
झड़ रहे है बाल लटक गये गाल लग गया चश्मा कब बदलीं यह सूरत
पता ही नहीं चला,
मैं ही बदली या बदले मेरे रिश्ते या समय भी बदला कितने छूट गये कितने रह गये
पता ही नहीं चला,
कल तक अठखेलियाँ करते थे अपनो के साथ जल्द ही सीनियर सिटिज़न हो जायेंगे।
पता ही नहीं चला,
अभी तो जीना सीखा है कब समझ आई
पता ही नहीं चला,
आदर सम्मान प्रेम और प्यार वाह वाह करती कब आई ज़िन्दगी
पता ही नहीं चला,
बेटी,बहू,मां का किरदार निभाया ख़ुशियाँ लाये ख़ुशियाँ आई,कब मुस्कुराई उदास ज़िन्दगी
पता ही नहीं चला,
जी भर के जी ले यारो फिर न कहना
पता ही नहीं चला, पता ही नहीं चला
दीपाली कालरा
नई दिल्ली