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1 Feb 2021 · 1 min read

पता नहीं चलता

तारीख बदल जाती है
और
मन की आंखों को पता नहीं
चलता
जिन्दगी गुजर जाती है
एक लम्हे की तरह और
वक्त को पता नहीं
पड़ता
मैं चल रही हूं या
रास्ते के किसी मोड़ पर
पैरों को बांधकर
मन को थामकर
खुद को सम्भाल कर
खड़ी हूं
यह कभी मुझे तो
कभी मेरे पैरों के नीचे
आती जमीन को
पता नहीं चलता।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 248 Views
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