पता तुम्हारा
सर्द हवाएँ मुझसे पूछेंगी क्या बोलूंगा ।
पता तुम्हारा किस पन्ने पर लिख लिख भेजूँगा ।
लिख दूंगा मैं तन्हा खाली यादें उनकी हैं ।
दीवारों पे पहरा दिल की रातें उनकी हैं ।
कह दूँगा तुम खुद ही जाओ ढूंढो जानो तो ।
खो ना जाना बीच भंवर में खुद पहचानों तो ।
कह दूंगा मैं फिक्र करो तुम खुद के हालत की ।
क्यों करते हो झूठे तुम भी बात वकालत की ।।
सम्भव कैसे लिखना और मिटाना तेरी बात ।
कितने सावन देखे होंगे आँखों की बरसात ।
कैसे कह दूं साथ तुम्हारा अम्बर झूठा है ।
इस धरती के सिरहाने से बादल रूठा है ।
क्यों करना है बातें तुमको उस बेगाने से ।
छूने को दिल करता तेरा लाख बहाने से ।
पिट रहे हो दरवाजे तुम बन्द अदालत की ।
क्यों करते हो झूठे तुम भी बात वकालत की ।।
✍️ धीरेन्द्र पांचाल