पतझड़ों में जो खिले (गीतिका)
* गीतिका *
~~
पतझड़ों में जो खिले वह फूल झड़ता है कहाँ।
आंधियों में जो जले वह दीप बुझता है कहाँ।
लक्ष्य पाकर ही रहेगा ठान लेता जो हृदय में।
वह पथिक फिर मंजिलों से पूर्व रुकता है कहाँ।
खूब गरजे हर दिशा में व्यर्थ गहराता रहे।
शुष्क बादल में नहीं जल वह बरसता है कहाँ।
राष्ट्र हित की भावना से दूर जो रहते सदा।
उन हृदय में शौर्यपूरित भाव पलता है कहाँ।
मौत से घबरा गये जो पीठ दिखलाते रहे।
शीश पर उनके भला फिर ताज सजता है कहाँ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)