पतंग
मुझे उससे बहुत शिकायत है
जिसके हाथ में पतंग तो है पर धागे की कमी है ;
न जाने यह पतंग उड़ाने वाला कैसा आदमी है;
गर पतंग उड़ानी है तो खुलकर उड़ाओ
यह जरुरी नहीं का तुम उसे देख ही पाओ
क्योंकि पतंग से ज्यादा जिसे अपने धागे पर
विस्वास होता है
उसकी मुट्ठी में पतंग तो क्या
समूचा आकाश होता है
ये क्या तुमने पतंग उड़ाई और धागा लपेटे चल दिए
अरे पतंग उड़ाने वाले जरा पीछे मुड़कर देखो
एक बार खुद भी उड़कर देखो
ये क्या तुमने पतंग उड़ाई
और खजूर में उलझा दी
उस बिचारी के गले में काँटों की माला पहिना दी ,
यह पतंग जो खजूर में उलझी है ;कितनी बेबसी है
न ऊपर जा सकती है ,,न भू पर आ सकती है
उस बिचारी का शरीर वही छलनी बन रहा है ..
जैसे किसी विधवा का त्यौहार मन रहा है
मैं सोचता हूँ मेरी भी जिंदगी पतंग होती
जो चाहे उसे शौक से उडाए
पर एक ही निवेदन है
खजूर में न उलझाये
क्योंकि खजूर में उलझी हुई पतंग
प्राय फट जाती है
और फटी हुई चीज की कीमत घट जाती है ””””……………