“पतंग की डोर”
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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मुझे मलाल क्यों होने लगा
सबकी अपनी जिंदगी है
सबकी अपनी राहें हैं
मंज़िल सबकी अपनी है !
कोई आसान रास्ता
तलाशता है
कोई उनमें से अपना हमसफ़र
चुनता है !
किसी में दम है
अकेले चलने का
हौसला है
एक पग में धरा को
नाप लेने का !
सब एक जैसे कभी भी
हो नहीं सकते
सबों की चाह अलग
होती है !
किसीको कोई जंजीरों
में कैद कब तलक
रख सकता है
सब उन्मुक्त पक्षी हैं
प्रतिबंधों में भला कौन रह
सकता है ?
पतंग की डोर को हवा की रुख
देखकर आकाश में
छोड़ दो
एहसास जब होने लगे
अपने पतंग के डोर को
लटाई में
लपेट लो !!
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डॉ लक्ष्मण झा”परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
16.04.2023