पढ़-लिख निखरेगा बचपन!
भोला मधुरिम रूप सत्य सा
मनभावन बचपन बच्चों का
जब जिम्मेदारी में खोता
बालरूप बस सिसक के रोता
सपने रोटी संग गुम जाते
सूखे अधर नहीं हँस पाते
ना बच्चे मस्ती कर पाते
बस बेबस पीड़ा जी जाते
फ़कत कमाते रोजी-रोटी
झुग्गी भी पड़ जाती छोटी
उनका वो परिपक्व सा जीवन
नहीं कोई कानून समझता
बदरंगी दुनिया से डरता
समय में एक बदलाव चाहिए
धूप में झुलसे से बचपन को
ममता की एक छाँव चाहिए
अलख ज्ञान की चलो जलाएं
बचपन को शिक्षित करवाएं
बालश्रम को अब रूकवाएं
काम की जगह किताबे आएं
नाम देश का होगा रौशन
जब पढ़-लिख निखरेगा बचपन!
स्वरचित
रश्मि संजय श्रीवास्तव
रश्मि लहर,
लखनऊ