पढ़ लिख कर बेकार हो गए, सपने चकनाचूर हो गए
पढ़ लिख कर बेकार हो गए, सपने चकनाचूर हो गए
हम नौकरी करने पड़ते हैं, क्या-क्या सपने गढ़ते हैं
उनका अलग ही दर्शन है, ले आए अलग ही वर्शन है
देने वाले बनो नौकरी, करो नहीं अब कोई चाकरी
कहां से हम उद्योग लगाएं, इतना पैसा कहां से लाएं
पढ़ लिख कर बेकार हो गए सपने चकनाचूर हो गए
सुरेश कुमार चतुर्वेदी