पढ़ें चुटकुले मंचों पर नित
पढ़ें चुटकुले मंचों पर नित,
लगा रखा सामंती डेरा।
बांध रहे खुद सहरा सिर पर
मत पूछो तुम दुख अब मेरा।
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आयें, चाहें लाख रुकावट,
कविता तो अविराम बढ़ेगी।
पाखंडी प्रपंचों से भी,
कविता बिल्कुल नहीं रुकेगी ।
रात अंधेरी हो काली भी
दीख रहा है मुझे सवेरा।
बांध रहे खुद सहरा सिर पर
मत पूछो तुम दुख अब मेरा।।
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हो संताप अनेकों लेकिन
मैं डरती हूं बस अपनों से।
जुड़ी हुई हूं केवल खुद से,
नहीं खेलती हूं सपनों से।।
गुजरी हूं अनगढ़ राहों से
यह तो इक अस्थायी फेरा ।
बांध रहे खुद सहरा सिर पर
मत पूछो तुम दुख अब मेरा।
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साफ मिलावट दीख रही है
जैसे दूध मिले सपरैटा।
नकली तो नकली दिखता है
चाहें जाये उसको फैंटा।
निश्चित कालिख स्वयं छंटेगी
होवे चाहें गहन अंधेरा।
बांध रहे खुद सहरा सिर पर,
मत पूछो तुम दुख अब मेरा।
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ये तो केवल छुआ छंछूदर,
नहीं डरी है नहीं डरेगी।।
भरकर नयी उड़ानें फिर से,
कविता तो आबाद रहेगी ।
मेरा तो संकल्प यही है
विपदाओं ने चाहें घेरा।
बांध रहे खुद सहरा सिर पर
मत पूछो तुम दुख अब मेरा।