पड़ जाओ तुम इश्क में
आदमी दीवाना हो जाता है
जब पड़ता है वो इश्क में
मिले कभी गम कभी खुशी
यही तो मज़ा होता है इश्क में
जान जायेगा तू भी कि
मिलता है कितना सुकून इश्क में
हो महबूब गर सामने तेरा
कोई और इच्छा नहीं रहती इश्क में
कभी आंसू, कभी हसीं
कभी विरह की वेदना है इश्क में
अब और क्या चाहूं मैं
दोनों जहां मिल जाते है इश्क में
सिमटता नहीं है कभी
सारा संसार अपना हो जाता है इश्क में
क्यों इकट्ठा करने में लगे हो ये बारूद
जीत जाओगे संसार, बस पड़ जाओ इश्क में
रची है जिसने ये सृष्टि
पड़ जाओ तुम उसके इश्क में
रचा है जिसको उसने, फिर
पड़ जाओगे तुम उसके भी इश्क में
वही संत हो सकता है यहां
जो पड़ गया है किसी के इश्क में
दुनिया से क्या लेना उसको
सब कुछ तो मिल गया है इश्क में
इश्क के सिवा कोई और
इच्छा नहीं रह जाती है इश्क में
बनना चाहते हो बैरागी तो
तुम पड़ जाओ किसी के इश्क में
भूल जाओगे घृणा, क्रोध
और इंसानियत के सभी दुश्मनों को इश्क में
हर दिल में दिखेंगे ईश्वर तुम्हें
बस एक बार पड़कर देख लो तुम इश्क में।