पड़ोसी की अहमियत!!
हमारे लिए पड़ोसी की कितनी अहमियत है,
यह पड़ोसी के व्यवहार पर निर्भर है,
पड़ोसी सुख-दुख में सहायक होता है,
पड़ोसी पर अपनों से ज्यादा भरोसा भी होता है।
लेकिन यदि पड़ोसी से अनबन हो जाए,
तो फिर पड़ोसी ही पहले काटने को आए,
पड़ोसी ही पड़ोसी के भेद बताए,
पड़ोसी ही पड़ोसी को नुक्सान पहुंचाएं।
पड़ोसी से हर हाल में अच्छा बरताव रहना चाहिए,
पड़ोसी की छोटी-सी बात पर ध्यान देना चाहिए,
पड़ोसी का ना कभी दिल दुखाना चाहिए,
पड़ोसी की अहमियत को सदा समझना चाहिए।
हमारे देश के भी कई पड़ोसी हैैं,
नेपाल तो वैसे भी हिन्दी भाषी है,
भूटान भी हमारा पड़ोसी है,
जिसकी सरहदें चीन से लगी है, बंगला देश भी हमारा पड़ोसी है,
हालांकि यह अपने ही देश का,एक अंग रहा है,
पाकिस्तान भी हमारे पड़ोस में ही बसा है,
यह भी अपने देश का एक अंग रहा है,
उधर कश्मीर से अलग हुआ पी ओ के है,
यह भी हमारे ही देश का एक भूभाग रहा है।
इनके अलावा भी अफगान है,
श्रीलंका,म्यांमार, और ईरान है,
और इन सब से बड़ा चीन है,
उत्तराखंड से लेकर लद्दाख व,
अरुणाचल तक कि सीमाओं पर गमगीन है।
इनमें से पाकिस्तान और चीन से,
हम जंग लड चुके हैं,
बहुत कुछ इस जंग में,
अपना को चुके हैं,
सबसे पहले तो चीन ने ही आक्रमण किया था,
जब भारत चीन भाई भाई का नारा दिया था,
पीठ के पीछे से धोखा दिया था।
पाकिस्तान ने भी हमसे दुश्मनी कर रखी है,
पैंसठ से लेकर निन्यानवें तक तीन जंग लडी है, और अब भी आगे-पीछे छाया युद्ध लड रहा है,
हमें जिहादियों को भेज कर दुखी कर रहा है,
उसकी निगाह कश्मीर पर लगी हुई है,
और कश्मीर हमारे लिए एक अहमियत से भरी है।
आज कल नेपाल के भी शुर बदले हुए हैं,
जिसके साथ हमारे रोटी-बेटी के रिस्ते रहे हैं,
दोनों देशों की जबान एक ही है,
दोनों देशों की आस्था भी एक ही है,
दोनों देशों के नागरिक बेझिझक ब टोंक,आ जा सकते हैं,
उस देश के नागरिक हमारे यहां पर रहते हैं,
और हमारे नागरिक वहां पर बस कर वहीं के हो गए हैं।
फिर अचानक यह हालात क्यों बदल रहे हैं,
हमारे पड़ोसी हमसे क्यो खफा हो रहे हैं,
इस पर तो विचार करना ही चाहिए,
क्या हमें पड़ोसियों से झगड़ना चाहिए,
या फिर कोई समाधान ढूंढने में लगना चाहिए,
एक साथ तीन पड़ोसी नाराज हैं,
और हमारा नुकसान करने को आतुर हैं।
माना कि उनकी गलतियां असहनीय हैं
फिर भी वह हमारे निकट पड़ोसी हैं,
उनसे नाहक रार बढ़ाने से फायदा नही,
और पड़ोसी से बात-बेबात झगड़ने का कायदा नहीं,
और यदि लड़ने की नौबत आ ही गई,
तो फिर आर-पार की होगी यह लड़ाई,
क्या हमारे सैनिक इस प्रकार के साजो सामान से परिपूर्ण हैं,
या फिर उन्हें बिना तैयारी के ही झोंकने को हैं,
वह तो एक आवाज पर जान न्योछावर कर ही देंगे,
लेकिन हम उन्हें यों ही झोंक देंगे,
तो उनके परिजन क्या कहेंगे,
उन्होंने इसी लिए उनको पाला है,
या यह किसी राजनीतिक कुचक्र का निवाला है।
पाकिस्तान से लेकर,
नेपाल से होकर,
चीन तक की सत्ता में,
भारी असंतोष की आशंका है,
और हम पर भी आर्थिक संकट,
और कोरोना महामारी का शाया है,
सबके सब संकट के दौर में चल रहे हैं,
और सत्ता के आकांक्षी, सत्ता के जोड़-तोड़ में लगे हैं।।