पछतावा
लघुकथा
?पछतावा ?
आज साहूकार रामधन व भोलाराम पक्के मित्र हैं।जरूरतमंदों की मदद व गरीबों से ब्याज न लेना अब रामधन अपना धर्म मानता है।
किसी समय धूर्तता के लिए मशहूर साहूकार रामधन ने गरीब किसान भोलाराम की जमीन बरसों से गिरवी रखी थी। भोला को उसने कर्ज दे-दे कर मय ब्याज उसकी रकम बढ़ाकर उधार देना बंद कर दिया। दो माह पहले भोला का इकलौता बेटा बुखार से तप रहा था। हजार मिन्नतों के बाद भी साहूकार ने पैसे न दिए । साहूकार की पत्नी उसके इस बर्ताव से बहुत दुखी थी। उसने भी कहा- “रामधन को कुछ पैसे दे दो” परन्तु रामधन ने पत्नी की एक न सुनी। इलाज के अभाव में भोला का इकलौता बेटा चल बसा।
परसों तेज आंधी व बारिश हो रही थी।साहूकार का बेटा बुखार से तप रहा था। उसे अविलंब शहर के अस्पताल में भर्ती कराना जरूरी था। साहूकार की गाड़ी एकाएक खराब हो गई।गांव में कोई मैकेनिक नहीं था। सब लोग साहूकार के दुर्व्यवहार से नाराज थे।अतः किसी ने मदद नहीं की।
संयोगवश भोला बैलगाड़ी दौड़ाता हुआ तेजी से आ रहा था। साहूकारों ने उसे न पहचाना। सड़क पर बैलगाड़ी के आगे हाथ जोड़ विनती करता बोला – “मेरे बच्चे को शहर ले चलो। तुम्हारे पांव पडूं।”
भोला ने बैलगाड़ी रोककर अविलंब रामधन व उसकी पत्नी के साथ बच्चे को अपनी बैलगाड़ी में शहर के अस्पताल में ले गया। डॉक्टर्स ने जांच कर तुरंत इलाज शुरू करके कहा – “बच्चे को गंभीर निमोनिया है। यदि थोड़ा देर हो जाती तो यह रास्ते में ही दम तोड़ देता।”
रामधन रो पड़ा और भोला के पैरों में गिरकर अपने किए की माफी मांगने लगा। भोला ने बस इतना कहा- ” साहूकार जी यदि पछतावा है तो कृपया मुझ जैसे सभी गरीबों को देनदारी से मुक्त कर दो।”
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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