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11 Feb 2024 · 1 min read

*पछतावा*

लेखक – डॉ अरुण कुमार शास्त्री

शीर्षक , पछतावा

बीत रहे हैं दिन पर दिन पछतावा तो होगा ।
खाली रहा तू सारा दिन पछतावा तो होगा ।

जन्म मिला था मानव का तूने बेकार गंवाया ।
सोने जैसा बदन मिला मिट्टी बीच मिलाया ।

बचपन बीता आई जवानी अब तू करना न नादानी ।
तू कर्मवीर तू श्रम का साधक ये ही सृजन निशानी ।

कब तक रहेगा यूं ही सोता सोच –सोच कर कुछ न होगा ।
हाँथों से अपने तकदीर लिखेगा एक दिन तू तदवीर लिखेगा ।

जमाना साथ है तेरे उठ जा देखना तू अद्भुत सृजन करेगा ।
जो बीत गया सो बीत गया उस पर रुदन अब तू नहीं करेगा ।

भारत की धरती पर जन्मा जो बच्चा अग्निवीर कहाता है ।
मेहनत से अपनी वो जग में कथा नई लिख जाता है ।

यदि कूद पड़े वो रण में तो विजय सुनिश्चित कर पाता है ।
हर आपदा को अपने कौशल से वो अवसर बनाता है ।

कद में छोटा वो दिखता है पर हिम्मत में शेर समान है ।
गज जैसा बल है उसमें चील सी दृष्टि और क्षमता महान है ।

पछतावा करने से कुछ न होगा मन में हीनता भर जाएगी ।
बुद्धि कुंद हो कर विषाद से फिर निष्क्रिय हो जाएगी ।

ऐसा मानव खो देता है जीवन का उत्साह और लगन ।
चल उठ जा, चल उठ जा बीत रहें हैं दिन पर दिन ।

Language: Hindi
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