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13 Mar 2022 · 3 min read

पचास हजार रुपये जिंदाबाद ( हास्य व्यंग्य)

पचास हजार रुपये जिंदाबाद ( हास्य व्यंग्य)
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मोटा भाई का फोन आया । कहने लगे “चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ ”
मैंने सोचा मौहल्ले की कमेटी में कहीं खड़े हो रहे होंगे। पूछ लिया “कौन से मोहल्ले की कमेटी में खड़े हो रहे हो ?”
बोले” मोहल्ला नहीं है ! लोकसभा में खड़ा हो रहा हूं ”
मैंने कहा ” लोकसभा में खड़ा होना कोई हंसी मजाक नहीं होता। जिसकी जेब में सत्तर लाख रुपये हों, वह लोकसभा में खड़ा होने लायक है। तुम्हारे पास कितने रुपए हैं ?”
मोटा भाई ने मायूस होकर कहा” सब तरफ से जमा करो , तो कुल मिलाकर पचास हजार रुपये होंगे”
मैंने कहा “खड़ा होने से पहले ही बैठ जाओ। जरा अपनी जेब की पोजीशन तो देख लिया करो, फिर खड़ा होने की बात करो। यह लोकसभा का चुनाव होता है। ऐसे थोड़े ही कि जिसके मन में आए, खड़ा हो जाए । खास लोगों के लिए यह चुनाव होता है। अब सोचो ! हर आदमी अगर खड़ा होने लगे तो लोकसभा के चुनाव की पोजीशन तो बिलकुल जीरो हो जाएगी। आदमी ने पीएचडी करी, लोकसभा के चुनाव में खड़ा हो गया । ऐसे कैसे चलेगा ? पहले जेब देखो ! मान लीजिए आप इंटर फेल हैं। कोई बात नहीं । लेकिन अगर जेब में 70 लाख हैं तो लोकसभा के चुनाव में खड़े हो सकते हैं।”
मोटा भाई मायूस-से हो गए। फोन रखकर दौड़े- दौड़े मेरे घर आए । गले से लग कर आंसुओं से रोने लगे। बोले” मामूली आदमी सत्तर लाख कहां से लाएगा ? न होगा बांस , न बजेगी बांसुरी । न सत्तर लाख रुपए होंगे और न मामूली आदमी लोकसभा में खड़ा हो पाएगा।” बोले “तुम्हारे बताने के बाद थोड़ा बहुत और हिसाब लगाया । साठ हजार से ज्यादा मैं किसी हालत में लोकसभा के चुनाव में खर्च नहीं कर सकता।”
मैंने कहा” 70 लाख तो वह हैं, जिस पर चुनाव आयोग निगरानी रख रहा है। वरना खर्च तो इससे कहीं ज्यादा होता है।”
मोटा भाई कहने लगे” ऐसे लोकतंत्र कैसे चलेगा ? तब तो सिर्फ पैसे वाले लोग ही लोकसभा में खड़े हो पाएंगे”
मैंने कहा” मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं। अच्छा भला शरीफ आदमी चुनाव में खड़ा हो, जनता की सेवा की भावना से इलेक्शन लड़े और लोकसभा में पहुंचे- इतना काफी है। चुनाव का सारा खर्च सरकार उठाए ।”
मोटा भाई की आंखों में चमक आ गई। बोले” क्यों न हम लोग मिलकर आवाज उठाएं कि लोकसभा के चुनाव में ज्यादा से ज्यादा पचास हजार रुपये किसी व्यक्ति को खर्च करने का अधिकार होना चाहिए। पचास हजार बहुत हैं। टैक्सी में जहां जाना है ,दूर तक जाए । वरना रिक्शा में घूमता रहे। और पैदल तो अपनी बात कहने का अवसर मिलेगा ही।”
मैंने मोटा भाई की हां में हां मिलाई। कहा “आप ठीक कह रहे हो। सारा खर्चा सरकार करे। मीटिंग का आयोजन, रेडियो- टीवी पर भाषण और चुनाव प्रचार सब कुछ सरकार के जिम्में। एक आदमी को चुनाव लड़ने के लिए पचास हजार से ज्यादा की कोई जरूरत नहीं है। पचास हजार रुपये जिंदाबाद । ”
मोटा भाई ने भी हाथ उठाया, मुट्ठी बांधी और नारा लगाया – पचास हजार रुपये जिंदाबाद ।
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लेखक: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451

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