पचमढ़ी के मेले
पचमढ़ी का है यह मेला,
कर्तव्य पथ की यह बेला,
पर्वत पर्वत पर हम चले,
टेढे मेढे पथ है पथरीले,
प्रकृति का है अद्भुत रुप,
यहां शिव का है स्वरुप,
धूपगढ़ की शाम निराली,
बजती है धुन यहाँ सुरीली,
चाैरागढ़ मे भक्त चढ़ते ले त्रिशूल ,
जाे देखता नही जाता इसकाे भूल,
काजरी नागझिरी है एक लाेक वहाँ,
राह मुश्किल पर धरा का स्वर्ग यहाँ,
बड़ा महादेव हाे या हाे गुप्त महादेव,
जटाशंकर सब जगह है देवाे के देव,
शरद रितु में हाेता पचमढ़ी महाेत्सव,
रंगारंग संगीत हास्य का है यह उत्सव,
जड़ी बूटियाे का है यहाँ खजाना,
पल पल है यहाँ बारिश का बरसना,
शैल शैल से बनी है पांडव गुफा,
कई रहस्य है इसके अंदर छुपा,
देश विदेश से यहाँ घूमने आते जन,
मन में शांति मिलती दूर हाेता निर्जन,
।।।।जेपीएल।।।