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15 Feb 2024 · 1 min read

पग मेरे नित चलते जाते।

पग मेरे नित चलते जाते।

बचपन गाता जैसे मधुकर
सुन्दर, सुखकर खुशियाँ भरकर,
जीवन की अविरल धारा में बेसुध हो हम बहते जाते
पग मेरे नित चलते जाते।

यौवन आया ले स्वर्ण – जाल
झूमे तरुवर जैसे विशाल,
उम्मीद लिए दो-नयनों के लघु दीप सदा जलते जाते
पग मेरे नित चलते जाते।

मधुरस रीता है खड़ी जरा
मन क्लांत, विकल, असमर्थ, डरा,
ढ़ल गई उम्र जैसे नभ के तारे अगणित ढ़लते जाते
पग मेरे नित चलते जाते।

है अंत सभी का मरघट पर
गंगा, यमुना, सरयू तट पर,
खुद को दिखला पर स्वप्नलोक जीवन भर हम छलते जाते।
पग मेरे नित चलते जाते।

अनिल मिश्र प्रहरी ।

Language: Hindi
1 Like · 146 Views
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