पग – पग पर बिखरा लावा है
पग – पग पर बिखरा लावा है
यह जग बस एक छलावा है…
जो बैठे है बन अति उदार
वह उनका महज दिखावा है.
प्रेम – प्रेम कह इठलाते जो,
घोर सदय फिर बन जाते जो..
वक़्त बदलने पर उनको भी
हाथ छुड़ा चलते देखा है…
मैंने जीवन से सीखा है…!!”
© Priya Maithil