पगडंडी
शायद मिले कहीं कभी तू
आशाओं के समुद्र मे
तलाश मे तेरी
भटक रहा हूं द्वारे द्वारे ।
ढूंढता फिरता है हर कोई तुझको
कहां छुपा बैठा है तू
मिलता नही कभी तू
किसी के पुकारे पुकारे ।
भौतिक सुखों से दूर
गुजर रही है जिन्दगी
तेरे मिलन की आस मे
सुख दुःख के किनारे किनारे ।
मिलेगा जिन दिशायों मे तू
बना देना इक पगडंडी
चल कर पहुंचुगा तुझ तक
जिसके मै सहारे सहारे ।।
राज विग 05.07.2022