पकड़ें सबकी लात
पांच साल के राज में, करते बड़ा कमाल।
भूतकाल को त्याग के, होते मालामाल।।
जनता के ही नाम पर, करते निशदिन लूट।
जनता को दुत्कार दें, मिली हुई है छूट।।
मनरेगा के छेव से, भरते अपनी जेब।
मुन्नर को रोटी नही, मुनरी खाती सेब।।
खाते उसके भर रहे, जो रहती नित छांव।
वो भी अब मजदूर है, धरी न बाहर पांव।।
संविधान का डर नही, नही रहा अब लाज।
सपना बेंच गरीब का,करते खुद पर नाज।।
सुनते नहीं गरीब की, ना दुखिया की बात।
जनता है पैरों तले, रहा न कोई नात।।
पांच साल के बाद ही, पता चले औकात।
नाक रगड़ते द्वार पर, पकड़ें सबकी लात।।
जटाशंकर”जटा”
२१-०१-२०२१