समझ नहीं पा रहे ___ कविता
डिबेट में बातों के ऐसे बेट चले।
हर बॉल बाउंड्री पार थी।।
टेलीविजन पर सुनी देखी हमने कमेंट्री।
पक्ष _ विपक्ष की हाहाकार थी।।
समझ नहीं पा रहे थे हम,
किसकी फीडिंग में है दम।
उत्साह बड़ा रही,
पैवेलियन में भीड़ अपार थी।।
सोचा मैच पूरा देखे या,
चैनल का बटन मोड़ दे।
शोक ही कुछ ऐसा पाल लिया,
ऐसे कैसे स्थान छोड़ दे।
हमे दोनो में से एक की दरकार थी।।
राजेश व्यास अनुनय