पक्ष-विपक्ष एवं निष्पक्ष!
हमारा रहा है सदा ही एक पक्ष,
हम कभी नहीं रहे हैं निष्पक्ष,
इसकी शुरुआत अपने घर से ही कर लें,
अपने परिवार के किसी भी सदस्य के रूप में,
हमारी-आपकी भावनाऐं ज्यादा ही धड़कती,
किसी और के लिए यह वैसी नहीं दिखती!
उसी परिवार में एक और पक्ष रहता है मौजूद,
वह दर्शाता है अपनी निकटता उस ओर,
अपने घर में अपने सहोदर को देख लें,
फिर अपने सौतेले या चचेरे को देख लें,
उनसे रिश्ता तो वही है रहता,
पर उनके लिए वैसा दिल नहीं धड़कता,
जो अपने सहोदर के लिए है झलकता,
वह भाव बोध यहां नहीं है दिखता!
वही सहोदर एक दिन वैसा नहीं दिखता,
यह अंतर तब महसूस है होता,
जब उसका स्थान पुत्र है ले लेता,
यह क्रम नहीं कभी है रुकता!
यह श्रृंखला हर कदम पर दूरी है बढ़ाती,
यह हमें अपने परिजनों में है नजर आती,
धीरे धीरे इसका दायरा बढ़ता जाता है,
यह हमें रिस्तेदारो से लेकर गांव पड़ोस में नजर आता है,
और फिर यह सिलसिला कहीं नहीं थमता,
गांव, पंचायत,ब्लाक और कस्बा,
या फिर हो वह जिला -मंडल राज्य देश का नक्शा,
इसका स्वरुप बदलता है जाता!
हम अपनी आवश्यकता अनुसार अपना नजरिया हैं बनाते,
जब राष्ट्र पर कोई समस्या आ जाए,
हम उस पर न्योछावर होने को तैयार हो जाते,
और यही चरित्र हम तब भी हैं अपनाते,
जब अपने पर कोई मुसीबत हैं पाते,
तब भी हम मरने मारने पर उतारू हो जाते!
यह हमारा स्वभाव, हमारा चरित्र,
हमारी सोच का है परिणाम,
फिर क्यों धरते हैं,
इसे पक्ष पात का नाम,
हर कोई पक्ष पात करता है यहां,
पर जब अपनी बात आती जहां,
हम दिखने का प्रयास करते हैं निष्पक्ष वहां,
किन्तु हम कभी निष्पक्ष रहे हैं कहां!
हम सदैव के पक्षपाती रहे हैं,
पक्ष विपक्ष तो हमने अपनी सुविधा के नाम धरे हैं,
और यही दिख रहा है हमें अपने देश प्रदेश में,
अपने नेताओं और अपने अफसरों में,
उनके व्यवहार में, उनके आचरण में,
उनके किरदारों में, उनके दलों में,
अपनी सुविधानुसार के पक्ष विपक्ष में,
इस नौटंकी के साथ वाले निष्पक्ष में !!