“पक्षी
रे मनुष्य,तू क्यों नही संभलता है?
दुख निस्सहायों का, तू क्यों नही समझता है?
देती हूँ दाना रोज पक्षियों को,
पहल-पहल वो पास आने से घबराते थे,
दाना खाने में वो थोड़ा सकुचाते थे।
एक दिन उन्होंने पुछा तुम कौन हो?
मैंने कहा मैं मनुष्य हूँ,तुम्हारी सखा,
सुनकर वो खिलखिलाये,
ठहर कर बोले,
क्यों झूठ बोल तू हमें भरमायें।
मैंने कहा क्या कोई शंका है,
उन्होंने कहा हाँ तुम्हारा संसार,
हमारे लिए रावण की लंका है।
तुम कौन हो?
करती हो प्रेम हमसे,
तुम भी मनुष्यों से दुखी हो?
बताओं हमें क्या तुम हमारी सखी हो?
मैंने कहा, ऐसा क्यों कहते हो?
मनुष्यों के अत्याचार क्यों सहते हो?
उन्होंने कहा ,
जन्मे है तुम्हारी तरह हम भी धरती पर,
तुम बलवान हो, बुद्घिवान हो,
तुम प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना हो।
मैंने कहा तुम्हें कोई शिकायत है?
उन्होंने कहा,
तुम सुनोगी, समझोगी, हमारी वेदना?
मैंने कहा ,
तुम भी तो प्रकृति की ही रचना हो,
उसका गढ़ा सुंदर सपना हो।
हाँ, पर तुम तो हमें उड़ाते हो!
अपनी छत पर बिठाने से कतराते हो।
अपने स्वाद के लिए तुम निर्दयी,
हमें अपना भोजन बनाते हो।
निरुत्तर हूँ उनके प्रश्नों से,
द्रवित हूँ मैं बहुत उनके ज़ख्मों से।
रे मनुष्य तू क्यों नही संभलता है?
दुख निस्सहायों का तू क्यों नही समझता है?
#सरितासृजना
(दोस्तों, हम सच में पशु पक्षियों के साथ जाने अनजाने में क्रूर बर्ताव कर देते है जिससे वो आहत होते है।मन ने कहा उनकी पीड़ा आप तक पँहुचाऊँ।अगर आप सबके मन में उनके प्रति थोड़ी सी भी संवेदना जन्म लेती है तो जरुर उसे जन्म लेने दें। पशुओं पर अगली बार!)