पंसद नही हैं अगर तो भुला दे हमको
पंसद नही हैं अगर तो भुला दे हमको
या मौत की गहरी नींद सुला दे हमको
माजूर हैं,भूखे भी,हमें तरकीबें न सुझा
खाना खिला या जहर पिला दे हमको
ऐ जिंदगी तेरे हिस्से के गम खाकर अब,
थक चुके हैं कुछ और खिला दे हमको
उभर के आऐ तो बहुत खल जाऐंगे तुझे
गर हो सके तो चुपचाप घुला दे हमको
पाक करदे नहलाकर खताओं से”आलम”
सर से पां तक अश्कों से धुला दे हमको
मारूफ आलम