पंडित राजेराम की काव्य विविधा पंक्तियाँ
पंडित राजेराम की काव्य विविधा पंक्तियाँ
मानसिंह तै बुझ लिए, मै इन्सान किसा सूं,
लख्मीचंद तै बुझ लिए, मै चोर लुटेरा ना सूं,
मांगेराम गुरु कै धोरै, रोज पांणछी जा सूं,
दुनिया त्यागी होया रुखाला, मै हस्तिनापुर का सूं,
राजेराम राम की माला, रटता शाम सवेरी।।
लख्मीचंद स्याणे माणस गलती मै आणिये ना सै,
मांगेराम गुरू के चेले बिना गाणिये ना सै,
ब्राहम्ण जात वेद के ज्ञाता मांग खाणिये ना सै,
तू कहरी डाकू-चोर, किसे की चीज ठाणिये ना सै,
राजेराम रात नै ठहरा, ओं म्हारा घर-डेरा हे।।
लख्मीचंद तै बूझ लिए, ठिक ठिकाणे आला सूं,
मांगेराम गुरू का चेला, ना कम गाणे आला सूं,
ठाढ़े का दुश्मन हीणे का, साथ निभाणे आला सूं,
गैरा के दुख दूर करणियां, बात बताणे आला सूं,
राजेराम प्रेम का बासी, नहीं तनै देख्या भाला।।
लख्मीचंद की जांटी देखण, चाला मोटर-लारी मै,
मांगेराम गुरु का पांणछी, देखा सांग दुह्फारी मै,
फाग दुलेन्ड़ी के मेले पै, आईये गाम लुहारी मै,
राजेराम दिखाऊंगा तनै, कलयुग का अवतारी मै,
उड़ै परमहंस जगन्नाथ महात्मा, आवै रोज बसेरे पै।।
म्हारे घरक्यां तै होई लड़ाई, चाल्या उठ सबेरी मै,
सन् 64 मै मिल्या पांणछी, मांगेराम दुहफेरी मै,
न्यूं बोल्या तनै ज्ञान सिखाऊ, रहै पार्टी मेरी मै,
तड़कै-परसूं सांग करण नै, चाला खाण्डा.सेहरी मै,
राजेराम सीख मामुली, जिब तै गाणा लिया मनै।।
लख्मीचंद बसै थे जांटी, ढाई कोस ननेरा सै,
पुर कै धोरै गाम पाणंछी, म्हारे गुरु का डेरा सै,
पुर कै धोरै हांसी रोड़ पै, गाम लुहारी मेरा सै,
राजेराम कहै कर्मगति का, नही किसे नै बेरा सै,
20 कै साल पाँणछी के म्हा, म्हारे गुरु नै ज्ञान दिया।।
;सांगरू.17 ष्बाबा जगन्नाथष् अनुण्.5द्ध
मानसिंह तै बुझ लिए, साधू बाणा कठिन होगा,
लख्मीचंद तै बुझ लिए, सुर मै गाणा कठिन होगा,
मांगेराम तै बुझ लिए, मांगके खाणा कठिन होगा,
हाथ के म्हा झोली-चिमटा, कांधै ऊपर काम्बल काला,
पन्मेशर का भजन करिए, एक तुलसी की लेके माला,
तेरा इतिहास लिखै, राजेराम लुहारी आला,
इसी कविताई है।।
कहै राजेराम कंस तनै मारेै, तू कन्या याणी होज्यागी,
भद्रा काली चण्डी दुर्गे, मात भवानी होज्यागी,
अष्टभुजी तू रूप धारकै, जग की कल्याणी होज्यागी,
दुनिया पूजै लखमीचंद की साची वाणी होज्यागी,
गुरू मांगेराम कहया करते, कदे गाम लुहारी आऊंगा।।
मानसिंह नै सुमरी देबी, धरणे तै सिखाए छंद,
लखमीचंद नै सुमरी देबी, सांगी होये बेड़े बंद,
मांगेराम नै सुमरी देबी, काट दिए दुख के फंद,
शक्ति परमजोत, करूणा के धाम की,
बेद नै बड़ाई गाई, देबी तेरे नाम की,
राखदे सभा मै लाज, सेवक राजेराम की,
शुद्व बोलिए वाणी री, सबनै मानी शेरावाली री।।
मानसिंह तै बुझ लिये, औरत सूं हरियाणे आली,
लख्मीचंद तै बुझ लिये, गाणे और बजाणे आली,
मांगेराम तै बुझ लिये, गंगा जी में नहाणे आली,
भिवानी जिला तसील बुवाणी, लुहारी सै गाम मेरा,
कवियां मै संगीताचार्य, यो साथी राजेराम मेरा,
मै राजा की राजकुमारी, सुकन्या सै नाम मेरा,
कन्या शुद्ध शरीर सूं, च्यवन ऋषि की गैल, ब्याही भृंगु खानदान मै।।
मांगेराम पाणछी मै, रहै था गाम सुसाणा,
कहै राजेराम गुरू हामनै, बीस के साल मै मान्या,
सराहना सुणकै नै छंद की, खटक लागी बेड़े.बंद की,
लख्मीचंद की प्रणाली का, इम्तिहान हो गया।।
सोनीपत की तरफ ननेरे तै, एक रेल सवारी जा सेै,
जांटी-पाणची म्हारे गुरू की, मोटर-लारी जा सै,
दिल्ली-रोहतक भिवानी तै, हांसी रोड़ लुहारी जा सै,
पटवार मोहल्ला तीन गाल, अड्डे तै न्यारी जा सै,
राजेराम ब्राहम्ण कुल मै, बुझ लिए घर-डेरा।।
ईब रट गोबिंद पार होज्यागी, लख्मीचंद की बण दासी,
मांगेराम गुरू का पाणछी, लिए धाम समझ कांशी,
कवियां मै संगीताचार्य, गांव लुहारी का बासी,
कथ दिया सांग महात्मा बुद्ध का, बणी रागणी फरमासी,
दुनिया चांद पैै गई, तू क्यूँ रहग्या राजेराम अंधेरे मै।।
राजेराम क्वाली, गावै तर्ज निराली,
गुरू मांगेराम रूखाली, लख्मीचंद की प्रणाली,
ब्रहमज्ञान धरया शीश पै सेहरा सै,
होग्या दिल मै दूर जो मेरा अंधेरा सै।।
फेर लख्मीचंद की जांटी देखी, आके दुनियादारी मै,
फेर उड़ै तै गया पाणंछी, बैठके मोटर-लारी मै,
वा जगाह ध्यान मै आई कोन्या, देख्या सांग दोह्फारी मै,
राजेराम घूमके सारै, फेर आया गाम लुहारी मै,
मनै सारै टोह्या किते पाया, मांगेराम जिसा गुरु नहीं।।
मांगेराम गुरु का पाणंछी, ल्यूं धाम समझ कांशी मै,
देख्या भाला कृष्ण-काला, तेरा श्याम ब्रजबासी मै,
छः चक्र, दस दिशा बताई, एक माणस की राशि मै,
राजेराम नै जोड़ रागनी, गाई सन् छ्यासी मै,
लख्मीचंद की प्रणाली कै, गावण का सिर.सेहरा।।
वसुदेव- मानसिंह बसौदी आला, सिखावण नै छंद आग्या,
गंधर्वो मै रहणे वाला, पंडित लख्मीचंद आग्या,
मांगेराम गुरू काटण नै, विपता के फंद आग्या,
देवकी- भिवानी जिला तसील बुवाणी, खास लुहारी गाम पिया,
भारद्वाज ब्राहमण कुल म्यं, जन्में राजेराम पिया,
भगतो का रखवाला आग्या, बणकै सुन्दर श्याम पिया||
राजेराम फंसी माया मै दुनिया पागल होरी सै,
धनमाया संतान-स्त्री माणस की कमजोरी सै,
समझदार हाकिम नै भी डोबै रिश्वतखोरी सै,
मांगेराम बताया करते एक फांसी मोह की डोरी सै,
लख्मीचंद कै उठ्या करती, वाहे खांसी होज्यागी।।
बचपन मै बेटी नै चाहना, मात-पिता के प्यार की हो,
डोर पतंग नै, मणी भुजंग नै, इसी तुरंग ना असवार की हो,
पत्नी पीह बिन, खेती मीह बिन, सुखै जमींदार की हो,
हंस-हंसणी बूगले-सारस, जोड़ी पुरुष-नार की हो,
साहूकार की निभै दोस्ती, निर्धन गेली कोन्या।।
बूआँ की बेटी, बहाण चचेरी, सगी बहाण मां जाई,
चौथी बहाण गुरूं की बेटी, बेदों नै भी गाई,
यार की पत्नी, बहाण धर्म की साली ठीक बताई,
तेरा बेटा सै बालकपण का, मेरा यार धर्म का भाई,
सेठ तेरे बेटे की बोढ़िया नै, सोचूं बहाण मै।।
पृथु नै भी धर्म की मात सुनीता मानी थी,
लछमन देवर माता भाभी सीता मानी थी,
भीष्म नै भी गंगा कैसी गीता मानी थी,
राजेराम नै ज्ञान की खोज कविता मानी थी,
डूप्लीकेट माल फोकट का, तेरी दूकान मै।।
9 दरवाजे, 10 ढयोढ़ी, बैठे 4 रुखाली,
20 मिले, 32 खिले फूल, 100 थी झुलण आली,
खिलरे बाग़ चमेली-चम्पा, नहीं चमन का माली,
बहु पुरंजनी गैल सखी, दश बोली जीजा साली,
शर्म का मारया बोल्या कोन्या, रिश्तेदारी करके।।
जड़ै आदमी रहण लागज्या, उड़ै भाईचारा हो सै,
आपा-जापा और बुढ़ापा, सबनै भारया हो सै,
एक पुरंजन 17 दुश्मन, साथी बारा हो सै,
बखत पड़े मै साथ निभादे, वोहे प्यारा हो सै,
प्यार मै धोखा पिछ्ताया, नुगरे तै यारी करके।।
6 नीति राजपुता की, ब्राह्मण की चार नीति सै,
पहली नीति सत बोलै बाणी, सत ही परमगति सै,
संध्या-तर्पण हवन-गायत्री, योग ब्रह्म-शक्ति सै,
माया त्यागै, भजन मै लागै, या ब्राह्मण की भक्ति सै,
आत्मज्ञान सब्र संतोषी, पटै ब्रह्म का बेरा।।
51 लाख नौ करोड़ योजन सूर्य की मंजिल भारी,
5 करोड़ 50 लाख योजन पर्वत-सागर खारी,
35 लाख 2 करोड़ 75 हजार योजन पृथ्वी सारी,
पृथ्वी नै पैताल मैं लेगे इसे हो लिए बलकारी,
वे धरती कै साथ रहे ना, क्यूं तेरी मारी गई मती।।
चैत-बसाख और धूप ज्येठ की, फेर साढ़ मै बरसै राम,
सामण, भादूआ, आसोज के म्हां, जमीदार कै छिड़ज्या काम,
कातक, मंगसर, पोह, माह पाछै, फागण खेलै देश तमाम,
फाग दुलहण्डी का मेला, कद फेटण आवै राजेराम,
मेला किसा बिछड़ग्या मेली, मै खेल-खिलोणा खोऊं सूं।।
तप मेरा शरीर, तप मेरी बुद्धि, तप से अन्न भोग किया करूं,
तप से सोऊं, तप से जागू, तप से खाया-पिया करूं,
तप से प्रसन्न होके दर्शन, भगतजनों नै दिया करूं,
मै अलख-निरंजन अंतरयामी, तप कै सहारै जिया करूं,
तप से परमजोत अराधना, तप से बंधू वचन के म्हां।।
तप मेरा रूप, तप मेरी भगती, तप तै सत अजमाया करूं,
तप मेरा योग, तप मेरी माया, तप तै खेल खिलाया करूं,
कोए तपै मार मन इन्द्री जीतै, जिब टोहे तै पाया करूं,
मै ब्रहमा, मै विष्णु, तप से मै शिवजी कहलाया करूं,
निराकार-साकार तप तै, व्यापक जड़-चेतन के म्हा।।