पंडिताइन (लघुकथा)
सब कहते हैं कि जोड़ियाँ भगवान के घर से ही बन कर आती है। पता नहीं यह कहाँ तक सत्य है। कुछ कहना बड़ा ही मुश्किल है। सच में कुछ जोड़ियों को देखकर लगता है कि सच में इस जोड़ी को भगवान ने बहुत फुर्सत में बनाया होगा और कुछ को देखकर ऐसा लगता है कि भगवान भी पता नहीं कैसी-कैसी जोड़ियाँ बना देते हैं।
आज एक अनोंखी जोड़ी की हम बात करेंगे। एक गाँव में एक पंडित और पंडिताईन रहते थे। दोनों में बहुत ही प्यार था। कहते हैं कि पंडित जी किसी काम से बाहर एक दिन के लिए भी चले जाते थे तो पंडिताईन खाना तक नहीं खाती थी और पंडिताईन एक दिन के लिए भी मैके चली जाती थी तो पंडितजी उन्हें लाने के लिए ससुराल तक चले जाते थे। इसलिए पंडित और पंडिताईन कभी बाहर जाना पसंद नहीं करते थे। ये दोनों शादी के बाद कभी भी अलग नहीं रहे। चाहे जो भी हो दोनों हमेशा साथ में ही रहते थे। इतना अधिक प्यार होने के बावजूद भी पंडितजी पंडिताईन को जो कुछ भी कहते थे। पंडिताईन हमेशा उनके बात का उल्टा ही करती थी। फिर भी पंडितजी, पंडिताईन को कुछ भी नहीं कहते थे और हमेशा जब पति पत्नी की बातचीत में विवाद की स्थिति आती थी तो पंडितजी चुप हो जाते थे।
एक बार पंडित और पंडिताईन दोनों प्रयाग मेला देखने के लिए गए। पंडित जी बोले कि पहले नहा-धोकर पूजा पाठ कर लेते है तब मेला घुमेंगें पंडिताईन राजी हो गई। दोनों पति-पत्नी गंगा जी में स्नान करने गए। थोड़ी देर में पंडित जी स्नान करके निकलने लगे और पंडिताईन को बोले पंडिताईन गंगा की धार बहुत तेज है बाहर आ जाओ। पंडिताईन बोली आप कपड़ा बदलो, मैं आ रही हूँ। थोड़ी देर बाद पंडितजी ने देखा तो पंडिताईन वहाँ नहीं थी। वे पंडिताईन को जोर-जोर से बोलकर ढूंढने लगे, चिल्लाने लगे लेकिन पंडिताईन कहीं भी दिखाई नहीं दी। पंडितजी उन्हें ढूंढने के लिए गंगा की धारा के विपरीत दिशा की ओर दौड़कर जा रहे थे। रास्ते में एक व्यक्ति ने उनसे पूछा पंडितजी आप इधर दौड़कर कहाँ जा रहें है? क्या हुआ? आप परेशान क्यों है? पंडितजी ने कहा अरे! पंडिताईन गंगा जी में डूब गई है उन्हीं को ढूंढने जा रहा हूँ। उस व्यक्ति ने कहा पंडितजी आप पश्चिम दिशा कि ओर क्यों जा रहे हैं? गंगा की धारा तो पूरब की ओर बह रही है। पंडितजी झिझक कर बोले अरे तुम्हें पता नहीं पंडिताईन हमेशा उल्टा काम करती थी, निश्चित रूप से वह धारा के बिपरीत दिशा में ही गई होगी। इसलिए समय न बर्बाद करके मैं उनके स्वभाव के अनुरूप, नदी की धारा के विपरीत दिशा में ही उनको ढूँढने जा रहा हूँ। यह सुनकर वह व्यक्ति बोला कोई बात नहीं पंडितजी ये काम पंडिताईन का नहीं है कि वे उल्टा करेंगी। पंडिताईन अपने स्वभाव के अनुसार चाहे कुछ भी करें लेकिन नदी की धारा अपनी प्रकृति के अनुरूप ही चलेगी और नदी की धारा पूरब की ओर बह रही है। इसलिए समय व्यर्थ न करें हमलोग उन्हें ढूँढने के लिए पूरब की ओर चलें। फिर वे दोनों मिलकर पंडिताईन को ढूंढने के लिए पूरब दिशा में चले गए। कुछ दूर पर ही पंडिताईन उन्हें मिल गई। पंडिताईन को देखकर पंडितजी बहुत खुश हुए। तब पंडित जी को भी अपनी भूल का एहसास हुआ कि प्रकृति उनकी पत्नी के स्वभाव के अनुसार नहीं चलती बल्कि प्रकृति अपनी खुद की दिशा और गति से चलती है।