पंचैती
गावों मे चारों ओर अपराधों के जाल बिछा है,
सामन्तीयों ने वहाँ कमजोरों को सदैव घेरते आया है,
कभी बेटियाँ की ईज्जत पर धावा बोला हैं,
कभी लोगों का धन हड्पने की खेल खेला है
पंचैती के नाम पर गावों मे अत्याचार फैला हैं ।
पैसा लेते समय मित्रों की अदा निभाया है,
फिर्ता मागने पर नानाभाँति के रौव दिखाता है,
खूद बेइमान है दूसरो को वैसे ही ठहराता है,
खैनी, बिडी पर गाव बासियोको बारम्बार बेबकूफ बनाया है
पंचैती के नाम पर फरमान जारी करते आया है ।।
स्वघोषित न्यायाधिश अपने को बनाया है,
बिना प्रमाण के पक्षपाती निर्णय सुनाता हैं,
जिसे खुद न्याय की बात ज्ञात कहाँ है,
वह दूसरो को न्याय दिलाने की बात करते आया है,
पंचैती के नाम पर लोगोंको मुर्ख बन है ।।।
षडयन्त्रकारी के भूमिका मे हमेशा रहा है,
गाव के सोझेसाझे बीच द्वन्द्व बढाया है,
इधर के झगडा उधर लगाया है,
मुक्त मे मटन चपाता आया है,
पंचैती के नाम पर गरीबों पर सितम ढाया हैं IV
#दिनेश यादव
काठमाडौं (नेपाल)