पंचतत्व में
रे मानव
,
अब भी सम्हल
मौत गूँगी सही
बहरी सही
अंधी सही
पर ! तेरे पास
पहुँचने से पहले
कितने संदेश तुझे भिजवाये,
पर ! तू समझे तब….
बाल सफेद हुए
फिर भी न सम्हला !
दृष्टि धूमिल हुई
फिर भी न बदला !!
दाँँत गिरने लगे
फिर भी न लगा !!!
कि कोई पास आ रहा है
तेरे जीवन में
तेरे डगमगाते
जर्जर शरीर को
पंचतत्व में
विलीन करने के लिए।