पंचतत्व में विलीन सखि री! इक दिन है सबको होना।
पंचतत्व में विलीन सखि री! इक दिन है सबको होना।
क्षणभंगुर ये जीवन सपना, अंततः धरती ही बिछौना।।
सुख- दुःख दोनों ही क्षणभंगुर, इक आए और इक जाए।
चमके क्षण भर, फिर खो जाए,जैसे मेघों का जल बह जाए।
है सत्य अटल, ये जीवन चक्र,फिर भी क्यों घुट-घुट रोना?
पंचतत्व में विलीन सखि री! इक दिन है सबको होना।
फिर क्यों मोह की आस सजी,बस प्रेम में जीवन को बुनले।
धन-दौलत,अभिमान त्याग सुख परोपकार ‘नीलम’ चुनले।।
सद् कर्म रहे अटल सदा,यही जीवन का असली सोना।
पंचतत्व में विलीन सखि री! इक दिन है सबको होना।।
नीलम शर्मा ✍️