पंचचामर छंद
जपो नमः शिवाय को हरेक पीर मेटते।
जटा धरे मयंक वो दुःख को समेटते।।
गले सजे भुजंग माल, मात गंग शीश है।
कृपालु भक्त की पुकार माँगती अशीष है।।
सजी रहे भभूति अंग आपको प्रणाम है।
बना निवास है हिमेश एक पुण्य धाम है।।
पिता गणेश के हमें सुबुद्धि ज्ञान दीजिए ।
सदा शिवा रहे प्रिया कृपा प्रदान कीजिए।।
करें सदा अनीति दूर,रुद्र के प्रताप से।
नमामि शंकरा नमो नमः शिवाय जाप से।।
बना रहे खुशी पवित्र शांति की मशाल हो।
सभी रहें प्रसन्न प्यार की यहाँ मिसाल हो।।
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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