पंख कटा हूँ एक परिंदा
जब जब हमको याद करोगे
रोओगे फ़रियाद करोगे।
कैद़ रहे इन आँखों में जो
अश्क़ों को आजाद करोगे।
ख़ाक हुई ग़र बस्ती दिल की
कैसे फिर आबाद करोगे।
तन्हाई से रिश्ता रक्खा
बुत से ही संवाद करोगे।
दिल में नफ़रत पालोगे तो
ख़ुद को ही बर्बाद करोगे।
साथ सफ़र में मेरे रहकर
राह नयी ईज़ाद करोगे।
परदा रुख़ से ज्यों खिसकेगा
लाख़ों को नाशाद करोगे।
ज़ीस्त पहेली है मेरी यह
कैसे हल उस्ताद करोगे।
तूफ़ां भी सज़दे में होगा
पुख़्ता ग़र बुनियाद करोगे।
सुनकर इन ग़ज़लों को मेरी
मिलकर सब इरशाद करोगे।
पंख कटा हूँ एक “परिंदा”
कब तक इस्तब्दाद करोगे।
इस्तब्दाद — अत्याचार