पंखुड़ी गुलाब की
सुबह सुबह हवा के साथ
उड़ते उड़ते मेरे हाथ
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की
वातावरण में लिख आई
वो पाती सुगंध की
आँगन में खेल गई
आँख मिचौली रंग की
उसने कीमत बढ़ा दी
हवा के बहाव की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की
बहते विचारों को दे रही
एक कोमल विराम
भावनाओं को दे रही
एक नया आयाम
मानो भूमिका बन रही हो
एक नई किताब की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की
जागे सभी तितली भंवर
काँटे भी हो गए सतर्क
टूट न जाए तस्वीर
इस सुंदर ख्वाब की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की