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19 Feb 2024 · 1 min read

पंखुड़ी गुलाब की

सुबह सुबह हवा के साथ
उड़ते उड़ते मेरे हाथ
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की

वातावरण में लिख आई
वो पाती सुगंध की
आँगन में खेल गई
आँख मिचौली रंग की
उसने कीमत बढ़ा दी
हवा के बहाव की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की

बहते विचारों को दे रही
एक कोमल विराम
भावनाओं को दे रही
एक नया आयाम
मानो भूमिका बन रही हो
एक नई किताब की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की

जागे सभी तितली भंवर
काँटे भी हो गए सतर्क
टूट न जाए तस्वीर
इस सुंदर ख्वाब की
जाने कहाँ से आ गई
एक पंखुड़ी गुलाब की

Language: Hindi
2 Likes · 78 Views

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