“पंखा”
“पंखा”
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‘पंखा’ घूमे , गोल -गोल,
हवा देता यह , पूरा हॉल;
गर्मी , ‘पंखा’ दूर भगाए;
फिर ये , ठंडक पहुचाये,
कभी , ‘छत’ से ये लटके;
कभी , दीवाल पर अटके;
टेबल पर बैठ कभी , घूमे,
कभी पैरों पे खड़े ये झूमे,
या फिर, नाचे ये हाथों में;
हवा दे ये, बातों -बातों में;
खुद जब ,बिजली खाता;
सबको तब हवा खिलाता,
घर , पसीना और कपड़ा;
भी , ये अच्छे से सुखाता।
००००००००००००००००
…… ✍️प्रांजल
……….कटिहार।