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22 Mar 2024 · 1 min read

“पँछियोँ मेँ भी, अमिट है प्यार..!”

पाँखुरी, घुटती, सिसकती रह गई,
जब गया, करता, भ्रमर गुँजार।
पवन पगली पा के थी हर्षित मगर,
सुरभि की महिमा है, अपरम्पार।।

लालिमा है क्षितिज की, कुछ कह रही,
उर मेँ वसुधा के, प्रबल उद्गार।
व्योम भी, आतुर हुआ है मिलन को,
शान्त, पर मन मेँ छुपाए ज्वार।।

शाश्वत है भाव बस इक, जगत मेँ,
ना किसी की जीत, ना ही हार।
कोई झुठलाए भी आख़िर कब तलक,
प्रीत का, होता नहीं व्यापार।।

चहचहाहट मेँ छुपी है भावना,
कुछ उलहना और कुछ प्रतिकार।
लौट आते साँझ को सब, डाल पर,
पँछियोँ मेँ भी, अमिट है प्यारl

नयन ढूँढें, शब्द के आधार को,
अधर सूखे, है विरह की मार।
मन को समझाऊँ भी “आशा” किस तरह,
कब हुए हैं स्वप्न सब, साकार..!

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 120 Views
Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
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