न रूह की आवाज उसतक पहुंच पाई,
न रूह की आवाज उसतक पहुंच पाई,
ना ही मेरी आंखों से झलका आंसू,
जो मेरी चुप्पी ही बर्दाश कर पाया,
उसके लिए मैने अपने आप को क्यूं है जगाया??
प्यार जताने का ठेका बस मैने ही लगाया ,
उसने तो अपने काम में मेरेलिए समय नहीं पाया,
जो एक बार तक मुझे मेरी हालत न पूछ पाया,
क्या मेरा दिल है, उसको हर पल है मैने सीने से लगाया।
आज तो वक्त को मैंने जैसे बदल दिया,
चाहे नींद आए ना आए मैं खुद को अकेला किया,
जरूरी नहीं की हर दूसरा दिन मुझे ही ख्याल आए,
एक बार तो वह मेरा अकेलापन महसूस कर पाए।
टूट गया दिल काली रातों में,
फिर शायद सब भूल जाऊंगी बेगानी बातों में,
ना नाराज होने का मन है ,और वह मनाएगा ऐसी आहट,
फिर से कामों में लग जाऊंगी और अब न रखूंगी कोई चाहत।