न रखो मन में कोई भ्रम
कितना भ्रम हम
पाले है जिन्दगी में
कौन अपना
कौन पराया
नहीं जान पाये
जिन्दगी में
भ्रम के संसार में
जीने का मजा ही
अलग है
जो अपने भी न थे
उन्हें गले लगाये रखे हम
भ्रम में काटी जिन्दगी
राधा ने
कृष्ण सिर्फ उसका है
लेकिन वो था
पूरी गोपियों का
भ्रम था सीता को
वो है पवित्र
लेकिन अग्नि परीक्षा
ने तोड़ा भ्रम उनका
बच्चे है उनके
भ्रम पाला माँ बाप ने
टूटा उस दिन भ्रम उनका
जिस दिन भेजा वॄध्दाश्रम
जिन्दगी मेरी है
जाऊँगा सालो साल इसे
टूटा भ्रम उस दिन
जिस दिन उठा चले
उठा चले लोग
अंतिम यात्रा पर
इसलिए यथार्थ में
जियो दोस्त
मत पालो भ्रम
जीवन में अनेक
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल