न मैं गीत लिखता हूँ
न मैं गीत लिखता हूँ न ही कविता कोई खास लिखता हूँ।
छू जाए जो दिल को मेरे बस वही हर बात लिखता हूँ।।
कहीं दो वक्त की रोटी को कडी मेहनत करता किसान है।
कहीं ऐश करती जिंदगी दोनों बातें साथ लिखता हूँ।।
ये जाति ये धर्म जिधर देखो सियासत ही सियासत है। बनो अब केवल भारत वासी विनती यही करता हूँ।।
सीमा पर सैनिक करे सुरक्षा और यहां महफूज हम सारे।
बारम्बार सलामी दिल से उनके नाम लिखता हूँ।
हो खत्म आतंकवाद दुनिया से रहें बस प्रेम से सारे।
रक्षा करें प्रभु हमारी प्रार्थना ये बारम्बार लिखता हूँ।।
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अशोक छाबडा
गुरूग्राम।