न भूलेंगे हम वो बरसात की रात
न भूलेंगे हम वो बरसात की रात
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न भूलेंगे हम वो बरसात की रात,
जिनसे हुई मेरी पहली मुलाकात।
घनघोर घटाएं घिर रही थी गगन मे,
दामिनी भी दमक रही थी गगन मे।
चारों तरफ घोर अंधेरा था छाया,
दिख न रहा था अपना भी साया।
सूझ न रहा था अपना भी हाथ,
न भूलेंगे हम वो बरसात की रात।
तभी किसी ने मेरे द्वार को खटखटाया
द्वार खोलते ही एक युवक खड़ा पाया।
खून से लथपथ था शरीर कपकपा रहा था,
वह अपने पैरो पर भी खड़ा न हो पा रहा था।
देखी न थी कभी मैंने ऐसी पहले भयभीत रात,
न भूलेंगे हम कभी वो ऐसी बरसात की रात।
मैंने उसे घर में बुलाया बिस्तर पर लिटाया,
बिस्तर पर लिटाकर उसे कंबल भी उढाया,
अंगीठी जलाई और दीया भी जलाया।
इस तरह से उसके शरीर को गरमाया,
न भूलेंगे हम कभी वो ऐसी ठंडी रात,
न भूलेंगे हम वो कभी बरसात की रात।।
सुबह उठते ही मैंने जब अपनीआंखे खोली,
उसके बिस्तर पर जाकर,उसकी नब्ज टटोली।
दर्द से वह बहुत बुरी तरह से कराह रहा था,
उससे बिस्तर से भी नहीं उठा जा रहा था।
हॉस्पिटल में एडमिट कराया और उपचार कराया,
सेवा करते करते उससे जुड़ गए ऐसे मेरे जज्बात।
न भूलेंगे हम दोनों वो कभी बरसात की रात।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम