बन बादल न कोई भरा
क्षितिज सा विस्तृत
दिखाई देती जिंदगी
दूर से दृष्टिगत धरती सा अनुभव
और व्योम सी भावनाएं
सूक्ष्मता से करीब उतरे तो
दोनों का मिलन एक दिवास्वप्न
आचेतनता की अवस्था में
अचेत हैं मानस यहाँ,
जिन्दगी फिसल रही
रेत से भरे मुठ्ठियों में ,
कशमोंकश के राहों में
कसमसाते से जो रहे,
कई रातों का अन्धेरा बने तुम ,
बिखरती रंगीनियों में
अरमां के बादल कब ये छटे,
हैरान हुये वीरानियों को देखकर
ठहाकों के फिर भी महफिल
खूबसूरत सजे हैं यहाँ
कहीं खामोशियों की आवो हवा
कही झड़ते सोनल सूखे पत्ते,
फूल था कोई मुस्कराता
खुशबू थी रवाँ रवाँ
पथ सजे थे पथिक से बेहद
मंजिल का पर न कोई नामोंनिशां
मिल गई कुछ दिशाओं से
कुछ पेड़ों को थोड़ी हवा,
माली खुश हुआ
कुछ तो जिन्दा है यहाँ,
बह तो रहे नदी -सा, मगर रुका रूका
दूर से आती कहीं दिल से सदा
न बन बादल कोई भरा
उङ जा हल्का हो
बरस के सदा यहाँ ।
….…………………..पूनम समर्थ (आगाज ए दिल)