जगत कंटक बिच भी अपनी वाह है |
पुरस्कारों की, न मुझको चाह है।
खिलखिलाहट से हमारा ब्याह है।
माँग ना यश की, रहाआनंद में
जगत् -कंटक बिच भी अपनी वाह है।
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि
आलोक” कृतियों के प्रणेता
08-04-2017