न थी बात दिल में दबाने के काबिल
न थी बात दिल में दबाने के काबिल
ज़माने से थी पर छुपाने के काबिल
तुम्हें हम भुला भी चुके होते कब का
अगर होते तुम भूल जाने के काबिल
तुम्हारी जफ़ा ने दी सौगात ऐसी
रहे ही न हम मुस्कुराने के काबिल
लिखी हैं जो दिल पर, बसी धड़कनों में
नहीं हैं वो यादें भुलाने के काबिल
रही कुछ कमी प्यार में ही हमारे
न समझा जो अपना बनाने के काबिल
न जुड़ते हैं टूटे हुये दिल कभी भी
नहीं इश्क है आजमाने के काबिल
दिया आप सबने हमें प्यार जितना
न थी ‘अर्चना’ इतना पाने के काबिल
14-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता