न तक़रार कर
212 212 212
क्यों सरेआम तक़रार कर।
फिर इसे तू न अखबार कर।।
प्यार कर ले तू मुझे शौक से।
अब कभी तू न तकरार कर
सांस लूँ जब भी आवाज दे
प्यार की मुझपे बौछार कर
जुस्तजू थी कभी जो मेरी।
फिर से आकर तू उपकार कर
जिंदगी यार को सौंप दी।
प्यार पर मेरे एतबार कर
आंख से है लहू ये बहा।
खत्म अब ये इंतजार कर
आरती लोहनी